“Sakhiya Aur Sabad,” Explanation of The 7th Chapter Of The Class 9 Hindi Book “Kshitij,” Written By Kabir . Making It An Essential Read For Class 9 Students. In This Article, We Provide A Detailed Explanation Of Sakhiya Aur Sabad.
पुस्तक: | क्षितिज |
कक्षा: | 9 |
पाठ: | 7 |
शीर्षक: | साखियाँ एवं सबद |
लेखक: | कबीर |
Sakhiya Aur Sabad Bhavarth In Hindi
साखियाँ
1. मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं। मुकताफल मुकता चुगैं, अब उड़ि अनत न जाहिं।
भावार्थ: इस पंक्ति में कबीर ने व्यक्तियों की तुलना हंसों से करते हुए कहा है कि जिस तरह हंस मानसरोवर में खेलते हैं और मोती चुगते हैं, वे उसे छोड़ कहीं नहीं जाना चाहते, ठीक उसी तरह मनुष्य भी जीवन के मायाजाल में बंध जाता है और इसे ही सच्चाई समझने लगता है।
2. प्रेमी ढूंढ़ते मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ। प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ।
भावार्थ: यहां कबीर यह कहते हैं कि प्रेमी यानी ईश्वर को ढूंढना बहुत मुश्किल है। वे उसे ढूंढते फिर रहे हैं परन्तु वह उन्हें मिल नहीं रहा है। प्रेमी रूपी ईश्वर मिल जाने पर उनका सारा विष यानी कष्ट अमृत यानी सुख में बदल जाएगा।
3. हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि। स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झक मारि।
भावार्थ: यहां कबीर कहना चाहते हैं कि व्यक्ति को ज्ञान रूपी हाथी की सवारी करनी चाहिए और सहज साधना रूपी गलीचा बिछाना चाहिए। संसार की तुलना कुत्तों से की गई है जो आपके ऊपर भौंकते रहेंगे, जिसे अनदेखा कर चलते रहना चाहिए। एक दिन वे स्वयं ही झक मारकर चुप हो जाएंगे।
4. पखापखी के कारणै, सब जग रहा भुलान। निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान।
भावार्थ: संत कबीर कहते हैं कि पक्ष-विपक्ष के कारण सारा संसार आपस में लड़ रहा है और भूल-भुलैया में पड़कर प्रभु को भूल गया है। जो व्यक्ति इन सब झंझटों में पड़े बिना निष्पक्ष होकर प्रभु भजन में लगा है, वही सही अर्थों में संत है।
5. हिन्दू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाई। कहै कबीर सो जीवता, दुहुँ के निकटि न जाइ।
भावार्थ: कबीर ने कहा है कि हिन्दू राम-राम का भजन और मुसलमान खुदा-खुदा कहते मर जाते हैं, उन्हें कुछ हासिल नहीं होता। असल में वह व्यक्ति ही जीवित के समान है जो इन दोनों ही बातों से अपने आप को अलग रखता है।
6. काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम। मोट चुन मैदा भया, बैठी कबीरा जीम।
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि आप या तो काबा जाएं या काशी, राम भजें या रहीम, दोनों का अर्थ समान ही है। जिस प्रकार गेहूं को पीसने से वह आटा बन जाता है तथा बारीक पीसने से मैदा, परन्तु दोनों ही खाने के प्रयोग में लाए जाते हैं। इसलिए दोनों ही अर्थों में आप प्रभु के ही दर्शन करेंगे।
7. उच्चे कुल का जनमिया, जे करनी उच्च न होइ। सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोई।
भावार्थ: इन पंक्तियों में कबीर कहते हैं कि केवल उच्च कुल में जन्म लेने से कुछ नहीं हो जाता, उसके कर्म ज्यादा मायने रखते हैं। अगर वह व्यक्ति बुरे कार्य करता है तो उसका कुल अनदेखा कर दिया जाता है, ठीक उसी प्रकार जिस तरह सोने के कलश में रखी शराब भी शराब ही कहलाती है।
सबद
मोको कहाँ ढूँढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में। ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे कैलास में। ना तो कौने क्रिया – कर्म में, नहीं योग वैराग में। खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं, पलभर की तलास में। कहैं कबीर सुनो भई साधो, सब स्वासों की स्वास में।
भावार्थ: इन पंक्तियों में कबीरदास जी ने बताया है कि मनुष्य ईश्वर को चहुंओर भटकता रहता है। कभी वह मंदिर जाता है तो कभी मस्जिद, कभी काबा भ्रमण करता है तो कभी कैलाश। वह ईश्वर को पाने के लिए पूजा-पाठ, तंत्र-मंत्र करता है जिसे कबीर ने महज आडम्बर बताया है। इसी प्रकार वह अपने जीवन का सारा समय गुजार देता है जबकि ईश्वर सबकी साँसों में, हृदय में, आत्मा में मौजूद है। वह पलभर में मिल सकता है, चूँकि वह कण-कण में व्याप्त है।
संतौं भाई आई ग्याँन की आँधी रे। भ्रम की टाटी सबै उड़ानी, माया रहै न बाँधी॥ हिति चित्त की द्वै थूँनी गिराँनी, मोह बलिण्डा तूटा। त्रिस्नाँ छाँनि परि घर ऊपरि, कुबुधि का भाण्डा फूटा॥ जोग जुगति करि संतौं बाँधी, निरचू चुवै न पाँणी। कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी॥ आँधी पीछै जो जल बूठ, प्रेम हरि जन भींनाँ। कहै कबीर भाँन के प्रगटै, उदित भया तम खीनाँ॥
भावार्थ: इन पंक्तियों में कबीर जी ने ज्ञान की महत्ता को स्पष्ट किया है। उन्होंने ज्ञान की तुलना आंधी से करते हुए कहा है कि जिस तरह आंधी चलती है, तब कमजोर पड़ती हुई झोपड़ी की चारों ओर की दीवारे गिर जाती हैं, वह बंधन मुक्त हो जाती है और खम्भे धराशायी हो जाते हैं। उसी प्रकार जब व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त होता है तब मन के सारे भ्रम दूर हो जाते हैं, सारे बंधन टूट जाते हैं। छत को गिरने से रोकने वाला लकड़ी का टुकड़ा जो खम्भे को जोड़ता है, वह भी टूट जाता है और छत गिर जाती है और रखा सामान नष्ट हो जाता है। उसी प्रकार ज्ञान प्राप्त होने पर व्यक्ति स्वार्थ रहित हो जाता है, उसका मोह भंग हो जाता है जिससे उसके अंदर का लालच मिट जाता है और मन के समस्त विकार नष्ट हो जाते हैं। परन्तु जिनका घर मजबूत रहता है यानी जिनके मन में कोई कपट नहीं होती, साधू स्वभाव के होते हैं, उन्हें आंधी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। आंधी के बाद वर्षा से सारी चीजें धुल जाती हैं, उसी तरह ज्ञान प्राप्ति के बाद मन निर्मल हो जाता है। व्यक्ति ईश्वर के भजन में लीन हो जाता है।
कवि परिचय
कबीर: कबीर के जन्म और मृत्यु के बारे में अनेक मत हैं। कहा जाता है उनका जन्म 1398 में काशी में हुआ था। उन्होंने विधिवत शिक्षा नहीं प्राप्त की थी, परन्तु सत्संग, पर्यटन द्वारा ज्ञान प्राप्त किया था। वे राम और रहीम की एकता में विश्वास रखने वाले संत थे। उनकी मुख्य रचनाएँ कबीर ग्रंथावली में संग्रहित हैं तथा कुछ गुरुग्रंथ साहिब में संकलित हैं। उनकी मृत्यु सन 1518 में मगहर में हुई थी।
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