NCERT Solution:- Patang Poem Class 12th Chapter 2 Of Aroh Part-II Book Has Been Developed For Hindi Course. We Are Going To Show Summary & Saransh With Pdf. Our Aim To Help All Students For Getting More Marks In Exams. In This Article, We Provide A Detailed Summary Of Patang.
पुस्तक: | आरोह भाग दो |
कक्षा: | 12 |
पाठ: | 2 |
शीर्षक: | पतंग |
लेखक: | आलोक धन्वा |
Patang Class 12th Explanation & Vyakhya In Hindi
सबसे तेज बौछारें गयीं भावो गया
सवेरा हुआ
खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए
अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज चलाते
घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से
चमकीले इशारों से बुलाते हुए
पतंग उड़ानेवाले बच्चों के झुंड को
प्रसंग:- प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘पतंग’ शीर्षक कविता से उद्धृत है जिसको मूल रूप से ‘आलोक धन्वा’ जी के काव्य-संग्रह ‘दुनिया रोज़ बनती है’ से लिया गया है। इन पंक्तियों में कवि ने प्रकृति में हुए परिवर्तन से प्रकृति-सौन्दर्य तथा बालकों को प्रकृति द्वारा पतंग उड़ाने के लिए निमन्त्रण का विचार प्रस्तुत किया है।
व्याख्या:- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने वर्षा ऋतु के समाप्त होने तथा शरद ऋतु के आगमन के सौन्दर्य का वर्णन किया है। ‘आलोक’ जी कहते हैं कि वर्षा ऋतु में जो बादलों से तेज बारिश होती है वह अब समाप्त हो चुकी है भादो का महीना (जिसमें काली घटाएं छाई रहती हैं) वह भी पूर्ण हो गया है। अर्थात अब अन्धकार खत्म हो रहा है। उजाले से भरा हुआ नया सवेरा हो रहा है। जिस प्रकार खरगोश की आँखें चमकती है उसी प्रकार शरद ऋतु की सुबह लाल रंग से चमक रही है, सभी दिशाएं खिली हुई है। आसमान साफ दिखाई दे रहा है, शरद रूपी प्रकाश जिसमें सब हरा-भरा खुशहाल दिखाई देता है वह अन्धेरे भादों के पुलों को पीछे छोड़कर आ गया है। शरदऋतु का मानवीकरण करते हुए कवि कहता है कि वह एक डाकिये के समान अपनी सुन्दरता की साइकिल चलाते हुए और बार-बार इसकी घंटी को बजाते हुए तथा सूर्य के प्रकाश से चमकीले आसमान की सुन्दरता ओस की बूंदों की चमक, प्रकृति के अनेक सौन्दर्यमयी दृश्य (प्रस्तुत) को दिखाते हुए शरद ऋतु पंतंग उड़ाने वाले बच्चों के समूह को पंतग उड़ाने का निमन्त्रण देती है। अर्थात् शरद ऋतु को सुन्दरता बच्चों को अपनी ओर आकर्षित करती हुई उन्हें अपने साथ खेलने के लिए बाधित कर रही है।
काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष – शरद ऋतु में प्रकृति सौन्दर्य का आकर्षण सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है।
(ख) कला पक्ष
• सरल, सरस, प्रवाहमयी भाषा की सुन्दरता पूर्ण पद्यांश में विद्यमान है।
• अनुप्रास, रूपक व पुनरूक्ति प्रकाश अलंकार का सुन्दर प्रयोग पद्य में हुआ है। .
• प्रकृति के मानवीकरण रूप का विशेष प्रकार से दृश्य प्रस्तुत किया गया है।
• प्रकृति के आलम्बन व अंलंकारिक रूप को भी कवि द्वारा प्रस्तुत किया गया है।
चमकीले इशारों से बुलाते हुए और
आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए
कि पतंग ऊपर उठ सके
दुनिया कि सबसे हलकी और रंगीन चीज़ उड़ सके
दुनिया का सबसे पतला कागज उड़ सके
बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके
कि शुरू हो सके सीटियों, किलकारियों और तितलियों की इतनी नाजुक दुनिया
प्रसंग:- पूर्ववत्। इन पंक्तियों में कवि ने पतंग की बनावट को प्रस्तुत करते हुए उसके द्वारा बाल क्रियाओं, बच्चों की उमगों, उनके सपनो को एक आकार प्रदान करने का प्रयत्न किया है तथा पतंग की खूबसूरती का व्याख्यान किया है।
व्याख्या:- कवि कहता है कि शरद ऋतु की सुन्दरता की चमक बच्चों को पतंग उड़ाने के लिए अपनी ओर आकर्षित कर रही है। शरद ऋतु प्रकृति की चमक, सुन्दरता के संकेतों से इन्हें बुला रही है। यह आसमान को इतना कोमल, साफ व विस्तृत बना देती है कि पतंग को इसमें उड़ने का पूरा स्थान मिल सके और पतंग अधिक ऊँचाई तक उड़ सके। बसन्त की सुन्दरता ऐसे स्वच्छ वातावरण को उत्पन्न करती है कि इसमें रंग-बिरंगी व हल्की-फुलकी विभिन्न प्रकार की पतंगें सारी दुनिया में उड़ाई जाती है। इस मौसम में बाँस की पतली छड़ी (कमानी) से तथा पतले से कागज की बनी हुई पतंगें आकाश में सभी ओर से संसार के सभी हिस्सों से उड़ती हैं और पतंग को उड़ाते समय इनका भरपूर आनन्द उठाया जाता है, बच्चों द्वारा खुशी के साथ सीटियाँ, किलकारियाँ, विभिन्न हर्षध्वनि की गूंज सब ओर फैल जाती है। इस सुनहरे लाल मौसम में तितलियां भी पतंगों के साथ प्रतिस्पर्धा करती हैं तितलियाँ, भंवरों द्वारा कोमल उड़ान भरी जाती हैं। अर्थात् पतंग उड़ाते समय बच्चे-बड़े-बूढे व जवान आदि भी आनन्द का अनुभव करते हैं। इस बसंत ऋतु का पूरा आनन्द उठाते हैं। बाल सुलभ क्रियाओं को पतंगबाजी द्वारा प्रस्तुत किया है। पतंग के इन सभी विशेषणों द्वारा बच्चे के चंचल, स्वच्छ, हलके मन व स्वभाव का पता चलता है।
काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष
• शरद ऋतु में बसन्त का समय इतना स्वच्छ एवं कोमल होता है कि उसमें पतंग उड़ाने तथा आनन्द अनुभव का अहसास होता है।
• पतंग की बनावट में बच्चों के लचक शरीर, चंचल क्रियाओं, नम्र स्वभाव का वर्णन है।
(ख) कला पक्ष
• सरल, सहज, स्पष्ट प्रभावमयी भाषा का सुन्दर ढंग से प्रस्तुत करने में कवि को सफलता मिली है।
• प्रकृति का मानवीकरण-रूप, उद्दीपन रूप की चर्चा की गई है।
• अनुप्रास अलंकार का कई स्थानों पर प्रयोग हुआ है। जैसे- ऊपर-उठ सकें सीटियों
• तुकबंदी व नाद सौन्दर्य से पूर्ण पद्यांश गेयता विद्यमान् है। गुण उर्दू व तदभव शब्दावली का प्रचूर प्रयोग हुआ है। से .
• ‘पतंग’ की बनावट में कवि ने अतिशयोक्ति अलंकार के साथ-साथ प्रवाहमयी शैली का भी प्रयोग किया है।
• नए उपमानों व बिम्बों का सुन्दर प्रयोग काव्य में हुआ है।
जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास
जब वे दौड़ते हैं बेसुध
छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं
डाल की तरह लचीले वेग से अकसर
प्रसंग:- पूर्ववत्। इन पंक्तियों में कवि बच्चों की बाल-क्रियाएँ तथा उनकी पतंग उड़ाने की मस्ती, चंचलता का दृश्य प्रस्तुत करता है। वे बच्चों का सम्बन्ध पतंग के साथ शिशु काल से ही मानते हैं।
व्याख्या:- कवि इस पद्यांश में बच्चों की कोमलता एवं चंचलता को प्रकट करते हैं। बच्चे जन्म के समय से ही कपास (रूई) के समान नम्र व कोमल होते हैं। और रूई (जिससे धागा बनता है) से उन्हें जन्म लेते ही घटी दी जाती है। इसलिए कवि कपास के साथ बच्चों का जन्म से सम्बन्ध स्थापित करता है। उनकी उछल-कूद तथा उनके पैरों की चचल गति के कारण वह सारी पृथ्वी पर पैदल घूम लेना चाहते हैं। अर्थात उनकी चंचलता अत्यधिक दिखाई पड़ रही है। बच्चे अपनी पतंग उड़ाने की मस्ती में बिना कुछ होश किए दौड़ते रहते हैं। वो पृथ्वी पर, छतों पर, सभी जगह मस्ती में घूमते हुए तथा सभी दिशाओं में अपनी कोमलता व मस्ती का मुदंग (ढोल के समान बजाने का वाद्ययन्त्र) बजाते हुए उत्साह पूर्ण कदम भरते हुए इधर से उधर आते-जाते फिर रहे हैं। वे अपनी कोमल चंचल रफ्तार से इस प्रकार भ्रमण कर रहे हैं जिस प्रकार तेज हवा के कारण कोई डाली मस्ती में इधर-उधर हिलती झूलती रहती है। अर्थात् बच्चों में पतंग उड़ाने तथा मौसम परिवर्तन के कारण चंचलता व मस्ती की उमंग भरी हुई है जिसमें वे बिना होश किए मग्न रहना चाहते हैं।
काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष- • बच्चों की चंचलता व कोमलता उनको सारी पृथ्वी व सभी दिशाओं में मस्ती से घूमा रही है।
• पतंग उडाते समय वो अधिक भावुक हो जाते हैं।
(ख) कला पक्ष –
• भाषा की सरलता, सरसता व प्रवाहमयता अत्यधिक प्रभावपूर्ण है।
• तत्सम् व उर्दू शब्दों की प्रचुरता पद्याश में विद्यमान् है।
• अनुप्रास अलंकार का सुन्दर प्रयोग है।
• मृदंग व डाल के रूप में बच्चे की क्रियाओं के वर्णन में रूपक अलंकार है।
• तुक बंदी के कारण गेयता का गुण विद्यमान है।
• बच्चों की चंचलता के लिए कवि ने नए नए बिम्बों का सुन्दर प्रयोग किया है।
छतों के खतरनाक किनारों तक
उस समय गिरने से बचाता है उन्हें
सिर्फ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत
पतंगों की धड़कती ऊंचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज एक धागे के सहारे
पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं
अपने रत्रों के सहारे
प्रसंग:- पूर्ववत् । प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने बच्चों की निर्भयता व अनजानेपन के कारण खतरों से खेलने की क्रियाओं का वर्णन किया है और उनको उमगें व आशाएँ पतंग की ऊँचाइयों के समान विस्तृत हैं।
व्याख्या:- पतंग उड़ाते समय बच्चों की चंचल क्रियाएँ, उनके शरीर की चचल सन्तुलित गतिविधियाँ उनमें साहस का संचार करती हैं। कवि कहता है कि बच्चों के लिए बिना किनारों वाली छतों से गिरने का भय हमेशा बना रहता है। परन्तु ये बच्चे बिना किसी डर के अपने उछल-कूद के स्वभाव के कारण इस ऋतु में पतंग उड़ाने का संपूर्ण आनन्द प्राप्त करते हैं। जब वो पतंग उड़ाते हुए छत के किनारे तक पहुँच जाते हैं तब अचानक केवल पतंग की डोर के सहारे वे अपने आप को संभाल लेते है। पतंग का और आगे बढ़ना व पीछे हटना पतंग की धड़कन के समान उस पतंग उड़ाने वाले बच्चे को अपनी ओर खींचकर रखती है। इस प्रकार पतंग उड़ाने वाले बच्चे भी पतंग को उड़ाते समय अपने आप को उससे जुड़ा हुआ मानते हैं तथा प्रतिस्पर्धा में आगे निकलना चाहते हैं। पतंग बच्चों की उमंगों व आशाओं का रंग-बिरंगा सपना-सा लगता है जिसमें बच्चे उन ऊँचाइयों को छूना चाहते हैं जिन ऊँचाइयों में पतंग अपनी हदें पार कर जाती है। इस प्रकार बच्चे अपनी छिन्द्र के समान छोटी सी आशाओं द्वारा पतंग की ऊँचाइयों को छूने के प्रयत्न करते हैं।
काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष
• डूबते को तिनके के सहारे के समान बच्चे अपने चचल, चुस्त संतुलित शरीर के द्वारा अपने आप को पतंग के सहारे बचाते हैं।
• बच्चों की आशाओं व उमंगों की ऊँचाइयों के प्रतीक रूप में पतंग की ऊँचाइयाँ है।
(ख) कला पक्ष –
• सहज, सरल प्रवाहमयी भाषा का सौन्दर्यात्मक प्रयोग है।
• उर्दू व तद्भव शब्दावली का प्रचूरता के साथ-साथ तत्सम शब्दों का भी उचित मात्रा में प्रयोग हुआ है।
• अनुप्रास अलंकार का सुन्दर प्रयोग है।
• नए उपमानों, नए प्रतीकों व नए बिम्बों का सौन्दर्य वृद्धि में महत्वूपर्ण स्थान है।
• पतंग का मानवीकरण हुआ है।
अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से
और बच जाते हैं तब तो
और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं
पृथ्वी और भी तेज घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास।
प्रसंग:- प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ में सकलित कवि ‘श्री आलोक धन्वा’ जी द्वारा रचित ‘पतंग’ शीर्षक कविता से उद्धृत किया गया है। इसमें कवि ने बच्चों द्वारा बिना भय के चंचलता से छत पर पतंग उड़ाने तथा उड़ाते समय गिरने के बाद फिर उसी उत्साह से पतंग उड़ाने का दृश्य प्रस्तुत किया है।
व्याख्या:- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने बच्चों की अत्यधिक चंचलता के कारण नकारात्मक दृष्टि में भी साकारात्मकता प्रस्तुत की है। कवि कहता है कि ये मस्ती से पूर्ण चंचलता बच्चे यदि कभी बिना किनारे वाली खतरनाक छतों से गिर भी जाते हैं और गिर कर चोट आदि लगने के बाद अगर बच जाते हैं तो ये बच्चे और अधिक उत्साह और निर्भयता से शरद ऋतु में सूर्य की सुनहरी किरणों के निकलने का इन्तजार करते हैं और दिन निकलने पर उत्साह व आनन्द के साथ पतंग उड़ाते हैं। अर्थात इनका मन स्वच्छ व कोमल होता है जो सभी चोट व घावों को शीघ्रता से भूलकर पुनः उमंग व आशाओं की खोज में लग जाता है। तब इस समय वे पृथ्वी का तेजगति से ऋतु परिवर्तन करने अथवा अपनी परिक्रमा पूरी करने का इन्तजार करते हैं। वे चाहते हैं कि जल्द से भादो आकर जाए और शरद् व बसंत की ऋतु पुनः आ सके जिसमें वो पहले से भी दुगुने उत्साह के साथ मस्ती व पतंग बाजी कर सकें। बच्चे और नई-नई गतिविधियों व नई-नई पतंगों को सबसे ऊँचा उड़ाने का हौसला रखते हैं। वो अपनी चंचलता के द्वारा नई आशाओं व उमंगों को पूर्ण करना चाहते हैं। क्योंकि हर अंधेरे के बाद प्रकाश व रात के बाद सुबह का आगमन निश्चित है।
काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष –
• कवि निराशा के बाद आशा की प्राप्ति का, भादो (अंधेरे) के बाद शरद (प्रकाश) के द्वारा संदेश देना चाहता है।
• इन पंक्तियों में कवि असफलता के बाद दुबारा सफलता के लिए दुगने उत्साह के साथ कर्म करने का भाव प्रकट कर रहा है।
(ख) कला पक्ष –
• कवि ने साधारण शब्दों के द्वारा महत्त्वपूर्ण संदेश की गम्भीरता को प्रकट किया है।
• भाषा की सरलता, सहजता व प्रवाहमयता प्रभावपूर्ण सिद्ध हुई है।
• कवि द्वारा सभी पंक्तियों में विशेषण प्रयोग पर विशेष बल दिया गया है। अनुप्रास अलंकार का सुन्दर प्रयोग हुआ है।
• उर्दू व तद्भव शब्दावली का प्रचूर मात्रा में प्रयोग हुआ तुकबंदी के कारण गेयता का गुण है। है।
• नए बिम्बों का कवि ने सुन्दर प्रयोग किया है।
Last Paragraph: I Hope Your Issue With The Bhavarth For Class 12 Hindi ‘Aroh Chapter 2 Patang ’ Has Been Resolved. Thank You For Visiting Our Site, And We Wish You Success In Your Studies.