Kale Megha Pani De Class 12 Summary In Hindi

Kale Megha Pani De,” Summary of The 12th Chapter Of The Class 12 Hindi Book “Aroh,” Written By Dharamvir Bharati . Making It An Essential Read For Class 12 Students. In This Article, We Provide A Detailed Summary Of Kale Megha Pani De.

पुस्तक:आरोह भाग दो
कक्षा:12th
पाठ:12
शीर्षक:काले मेघा पानी दे
लेखक:धर्मवीर भारती

Kale Megha Pani De Class 12 Summary

‘काले मेघा पानी दे’ धर्मवीर भारती का एक प्रसिद्ध संस्मरण है, जिसमें लोक प्रचलित विश्वास और विज्ञान के तर्क का दवदव है। इसे पढ़कर पाठक भी सोचने पर विवश हो जाता है कि आखिर दोनों में से कौन-सा बेहतर है। जिन चुनौतियों का विज्ञान के पास कोई उत्तर नहीं है, जन मानस उनका सामना अपने विश्वास और उत्सवों से करने के लिए तत्पर रहता है। अपने अर्ध्य और दान के द्वारा प्रकृति को खुश करके अपनी समस्याओं का समाधान करने की कोशिश करता है। दान और त्याग की इस भावना को अंधविश्वास बिल्कुल नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इनसे किसी वर्ग विशेष या धर्म की हानि नहीं होती है। ये तो वे सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्य हैं, जो भारतीयता का मूल आधार हैं। विश्वास एक रचनात्मक जीवन-मूल्य है। इंदर सेना के प्रयास से वर्षा करवाने का विश्वास यद्यपि वैज्ञानिक नहीं लगता, लेकिन विपरीत परिस्थितियों में भी जीने और उत्सव मनाने की भारतीयता को दिखाता है लेखक का एक वैज्ञानिक मन भी अपनी जीजी की संतुष्टि और अपने प्रति उनका सदभाव बचाए रखने के लिए तमाम रीति-रिवाजों को ऊपरी तौर पर ही सही अपनाने को बाध्य बना रहता था।

लेखक ने संस्मरण के प्रारम्भिक भाग में भारतीय जनमानस में गहरे से बैठे हुए उन विश्वासों का चित्रण किया है, जो आज के वैज्ञानिक युग में भी वर्षा के देवता इन्द्र से वर्षा करवाने की भरपूर कोशिश में लगे हुए हैं। इन्द्र की सेना, जिसे लेखक ने मेंढक मंडली कहना ज्यादा उचित समझा है, नगे बदन तथा कीचड़ से लथपथ गंगामैया की जयकार करती हुए मेघा से पानी की माँग करती है। पानी की कमी से परेशान लोग गर्मी के उस मौसम में भी पानी उन पर फेंकते हैं, क्योंकि उन्हें विश्वास है कि इससे इन्द्र देव प्रसन्न होकर वर्षा अवश्य करेंगे। लेकिन लेखक को यह पानी की बर्बादी लगती है। लेखक को लगता है कि इन्हीं अंधविश्वाओं के कारण ही हम सैंकड़ों वर्ष अंग्रेजों के गुलाम रहे। इसके

पाठ की इस भाग में लेखक ने एक समाज सुधारक और उस पर हावी उसके रिश्ते तथा भावना का दुवदेव दिखाया है। आर्य समाज तथा कुमार सुधार सभा से जुड़े होने के कारण इन सभी अंधविश्वासों और पाखंडों का विरोध करता है। लेकिन उनकी सबसे प्रिय जीजा सभी लौहारों के अनुष्ठान, जो लेखक को पाखंड दिखाई पड़ते हैं, उन्ही से करवाती है ताकि उनके पुण्य का फल मिले। यहाँ लेखक के अन्तर्मन की विवशता को तोड़ना नहीं चाहते। उनका वैज्ञानिक मन भी इस सांस्कृतिक भावना को नहीं पहुंचा सकता।

लेखक ने इस भाग में कहा है कि भारतीय जन मानस में व्याप्त विश्वास केवल अंधश्रद्धा के कारण नहीं है, बल्कि उनका भी एक वैज्ञानिक आधार है। इसके अतिरिक्त दान की एक उचित और तर्क संगत परिभाषा भी दी गई। जीजी के कहने पर भी लेखक ने इन्द्र सेना पर पानी डालने से साफ मना कर दिया। इस पर जीजी ने ऋषि-मुनियों का हवाला देते हुए इस पानी को इन्द्र को दिया अर्ध्य देकर खुश करने की बात कही। लेखक इसका भी विरोध करता है। जीजी का मत है कि जैसे बिना बीज बोए खेत में फसल उगाना संभव नहीं है, उसी प्रकार इन्द्र सेना को पानी दिए बिना इन्द्र देव से वर्षा की आशा नहीं रखी जा सकती। बिना बीज के फसल विज्ञान भी पैदा नहीं कर सकता। इस तक की लेखक के पास कोई काट नहीं थी। इसके अतिरिक्त दान और त्याग का अर्थ स्पष्ट किया गया है। अपनी जरूरत को पीछे रखकर दी गई वस्तु या धन ही त्याग है, वही दान है और उसी का फल हमें मिलता है। जिसका गांधी जी ने भी समर्थन किया है। जनता और राजा एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। दोनों के प्रभाव से प्रकृति भी अछूती नहीं रह सकती। कुल मिलाकर इस भाग में विश्वास और संस्कृति विज्ञान पर हावी है।

पाठ के अंतिम भाग में भारतीय समाज की इस विडम्बना तथा दुविधा को उजागर किया है कि एक और यह वैज्ञानिक अविष्कारों से अपने लिए सुख-सुविधाएँ चाहता है लेकिन उसके सिद्धान्तों को आत्मसात नहीं करना चाहता है। दूसरी और अपने सांस्कृतिक जीवन मूल्यों को हम भूलते जा रहे हैं। न तो पूर्ण रूप से आधुनिक हो पा रहे हैं, न ही अपने को संस्कृति से जुड़ रहे हैं। भारत के विकास पर व्यंग्य भी किया गया है, भारतीय अर्थव्यवस्था विकसित होने का दावा करती है। विकास की अनेक योजनाएँ बनती हैं, लागू भी होती हैं, लेकिन उनका परिणाम कुछ भी नहीं निकलता। विकास भी होता है, सबको सुख सुविधाएँ भी मिलती हैं, लेकिन सभी कुछ केवल कागजों में यथार्थ के धरातल पर आज गगरी फूटी हुई है तथा बैल प्यासे हैं। अर्थात वास्तविक स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है। कृषि आज भी वर्षा पर निर्भर है, वर्षा इन्द्र देवता के अधीन है और भारतीय समाज के पास इसे खुश करने का इन्द्र सेना के अतिरिक्त उपाय नहीं हैं।

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