NCERT Solution:- Bhaktin Poem Class 12th Chapter 11 Of Aroh Part-II Book Has Been Developed For Hindi Course. We Are Going To Show Summary & Saransh With Pdf. Our Aim To Help All Students For Getting More Marks In Exams. In This Article, We Provide A Detailed Summary Of Bhaktin.
पुस्तक: | आरोह भाग दो |
कक्षा: | 12 |
पाठ: | 11 |
शीर्षक: | भक्तिन |
लेखक: | महादेवी वर्मा |
Bhaktin Class 12 Summary Hindi
‘भक्तिन’ महादेवी जी का प्रसिद्ध संस्मरणात्मक रेखाचित्र है। जिसमें लेखिका ने अपनी सेविका भक्तिन के व्यक्तित्व का परिचय देते हुए उसके अतीत और वर्तमान का सुंदर चित्र प्रस्तुत किया है। भक्तिन एक संघर्षशील और स्वाभिमानी स्त्री है, जिसने धोखे और कपट से भरी सामाजिक मान्यताओं का डटकर सामना किया, लेकिन जीवन के अंतिम पड़ाव पर उनसे हारकर अपने जीवन को पूरी तरह बदल लेती है। अपने आप को महादेवी जी की अनन्य सेविका के रूप में समर्पित करके उसके जीवन को भी देहाती बनाकर अपने रंग में रंग देती है। महादेवी जी भी भक्तिन को अपने व्यक्तित्व का अंश मानकर उसे खोना नहीं चाहती।
पाठ के प्रथम भाग में लेखिका ने भक्तिन के दुखदायी बचपन का परिचय दिया है। भक्तिन नाम लेखिका का दिया हुआ है, उसका असली नाम है- लछमिन अर्थात लक्ष्मी। वह एक अहीर की इकलौती बेटी है, जिसकी शादी पाँच वर्ष की आयु में तथा नौ वर्ष की आयु में ही गौना करके ससुराल भेजा जाता है। बचपन में ही माता के देहांत से विमाता की ताड़ना सहन करनी पड़ी। शादी के बाद पिता की मृत्यु से मायके के सारे संबंध समाप्त हो गए। लेखिका ने पाठ के इस अंश में भक्तिन के चरित्र की दो विशेषताओं की ओर संकेत किया है। सरल स्वभाव तथा परिस्थितिजनक स्वाभाविक क्रोध।
भक्तिन के पारिवारिक जीवन में केवल एक ही बात सकारात्मक थी कि उसे पति का भरपूर प्रेम मिला। तीन लड़कियों को जन्म देने के कारण वह सास और जेठानियों की उपेक्षा का शिकार हुई। लेखिका ने यहाँ लड़के लड़की का सर्वसुलभ अंतर भी प्रदर्शित किया है। बड़ी लड़की की शादी के बाद पति की मृत्यु ने भक्तिन को एकदम तोड़ दिया। लेकिन उसने हार नहीं मानी, पहले की भांति अपने सारे कारोबार को ज्यों-का-त्यों संभालकर रखा, जो उनके सगे संबंधियों को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। वे सभी चाहते हैं कि ये सारा कारोबार, पशु और घर बार उनका हो जाए तथा लछमिन यहाँ से छोड़कर चली जाए। लछमिन ने अपने बड़े दामाद को घर जमाई बनाकर रख लिया। लेकिन तभी उसकी लड़की भी विधवा हो गई। उसके परिवार के लोग लड़की की शादी अपने किसी जान पहचान के व्यक्ति से करवा देना चाहते थे जिसका लड़की ने विरोध किया। यहाँ पर लेखिका ने समाज की एक समस्या को रेखांकित किया है कि किस प्रकार समाज किसी स्त्री की बेबसी, लाचारी और गरीबी का लाभ उठाकर उसे झूठ के जाल में फंसाकर नापसंद और घृणा-पात्र युवक से शादी करने को विवश कर देता है।
भक्तिन महादेवी जी के पास शहर पहुँचती है। उसकी वेश-भूषा में गृहस्थ और वैराग का सम्मिश्रण है। वह रसोई का सारा काम कर लेती है। सुबह उठकर सूर्य का जल से अभिनंदन तथा दो मिनट नाक दबाकर जप करने के उपरान्त रसोई में प्रवेश करती है। जब से भक्तिन ने रसोई में प्रवेश किया है, महादेवी जी का रसोई में प्रवेश दुर्लभ हो गया है। दाल-सब्जी न बनने पर भक्तिन अमचूर और लाल मिर्च की चटनी पीस लेती है। इसके साथ-साथ वह भोजन में गुड़ परोसना भी नहीं भूलती। शहर में रहने वाली महादेवी जी गाँव की इस निपट देहातिन से इतनी प्रभावित होती है कि वह खुद भोजन के मामले में गुड़ परोसना भी नहीं भूलती। शहर में रहने वाली महादेवी जी गाँव की इस निपट देहातिन से इतनी प्रभावित होती है कि वह खुद भोजन के मामले में देहातिन सी हो गई। शहर की हवा से प्रभावित होने की अपेक्षा भक्तिन महादेवी जी को अपने रंग में रंग देती है। ग्रामीण जीवन के मोटे और साधारण भोजन लेखिका को भी अच्छे लगते हैं। यहाँ तक कि लेखिका को अनेक दंतकथाएँ तक याद करवा दी हैं, वह भी भक्तिन की भाषा में, लेकिन भक्तिन ने शहर की कोई बात, कोई शिष्टाचार, कोई व्यंजना से प्रभावित हुए बिना अपनी सरलता और सहजता को बनाए रखा है। यह उसके चरित्र की दृढ़ता को दर्शाता है।
भक्तिन में दुर्गुणों का पूर्णतया अभाव नहीं है। अपनी स्वामिनी की खुशी के लिए थोड़ा बहुत झूट वह अक्सर बोल देती है। इधर-उधर पड़े पैसे को वह इक्ट्ठा करके रख लेती है। किसी भी बात को अपनी सुविधानुसार, शास्त्रमत के अनुसार बताकर, तर्क की चुनौती देना, भक्तिन के लिए साधारण सी बात है। शास्त्र का सहारा लेकर अपने सिर मुंडाने की बात में वह लेखिका को निरूत्तर कर देती है। वह अनपढ़ है लेकिन महादेवी जी की पढ़ाई-लिखाई पर उसे अभिमान है। इस उम्र में पढ़ना उसे अपने अपमान जैसा लगता है, लेकिन बिना पढ़े-लिखे ही, अपनी मालकिन की पढ़ाई के कारण वह पढ़ने वालों की गुरु बन बैठी। उसे इस बात पर गर्व है कि उसकी मालकिन जैसा काम कोई और नहीं कर सकता। लेखिका केर कार्य में वह हाथ बंटाना चाहती हे, सारी-सारी रात उनके साथ जागती है। लेखिका के बिना इशारा किए उन्हें उनकी इच्छित वस्तु देने को तत्पर रहती है। कोई भी लेख या छंद पूर्ण होने पर वह खुशी से उछल पड़ती है। ये सभी बातें भक्तिन को एक -अनन्य सेविका के रूप में स्थापित कर देती हैं, लेखिका को उसके साथ एकात्मकता स्थापित करने पर विवश कर देती हैं।
सवेरे भक्तिन लेखिका से पहले उठती है और उनके साथ ही घूमने जाती है। छाया के समान हमेशा वह साथ रहती है। युद्ध के भय से वह लेखिका को अपने साथ गाँव चलने का आग्रह करती है। अपने बचाए हुए पैसे से उनके रहने और सुख सुविधाओं का ध्यान रखने का आश्वासन देती है। इस घटना के कारण लेखिका के साथ भक्तिन का संबंध स्वानो-सबक के बंधनों को तोड़कर उनसे कहीं ऊपर, चरमोत्कर्ष पर पहुँच जाता है। उनके भीतर से सहज स्नेह और सहानुभूति की आभा फूटनी नज़र आती है। लेखिका के परिचित और साहित्यिक मित्रों को वह उनके आकार-प्रकार और वेश भूषा से सरण करती है। कभी-कभी तो उन पर कटाक्ष करने से नहीं चूकती। भले ही वह कविता से प्रभावित न हो लेकिन किसी भी व्यक्ति का दुख उनसे नहीं देखा जाता। जेल उसके लिए यमलोक से भी ज्यादा भयानक है। उसकी कमजोरी के कारण वह कई बार उपहास का पात्र भी बन जाती है। वह लेखिका के जेल न जाने की कल्पना से इतनी प्रसन्न नहीं होती, जितनी अपने साथ न जा सकने की संभावना से अपमानित। भक्तिन लेखिका से बिछुड़ने की कल्पना भी नहीं कर सकती, लेखिका भी उस वियोग की कल्पना से सिहर उठती हैं, जो वियोग जीवन का एक यथार्थ सत्य है। लेखिका ने अंत में भक्तिन के वियोग को जीवन के वियोग से जोड़कर देखा है।
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