“Bacche Kaam Par Ja Rahe Hain,” Bhavarth of The 14th Chapter Of The Class 9 Hindi Book “Kshitij,” Written By Rajesh Joshi. Making It An Essential Read For Class 9 Students. In This Article, We Provide A Detailed Bhavarth Of Bacche Kaam Par Ja Rahe Hain.
पुस्तक: | क्षितिज |
कक्षा: | 9 |
पाठ: | 12 |
शीर्षक: | बच्चे काम पर जा रहे हैं |
लेखक: | राजेश जोशी |
Bacche Kaam Par Ja Rahe Hain Bhavarth In Hindi
कोहरे से ढकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं
सुबह सुबह
बच्चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण के तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?
भावार्थ:
कवि ने कोहरे से ढकी सड़क पर काम पर जाते बच्चों की स्थिति को अत्यंत भयावह और चिंताजनक रूप में प्रस्तुत किया है। जब हम सुबह-सुबह बच्चों को काम पर जाते हुए देखते हैं, तो यह दृश्य हमारे समय की सबसे भयानक स्थिति को दर्शाता है। यह सिर्फ एक विवरण नहीं है, बल्कि एक गंभीर प्रश्न है कि बच्चों को काम पर क्यों जाना पड़ रहा है? यह सवाल उठाता है कि समाज में क्या ऐसा हो गया है कि बच्चों का बचपन और उनकी मासूमियत छिन गई है और वे काम करने के लिए मजबूर हैं।
क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्या दीमकों ने खा लिया है
सारी रंग बिरंगी किताबों को
क्या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
भावार्थ:
कवि यह प्रश्न उठाते हैं कि क्या हमारे समाज में ऐसी आपदाएँ आई हैं कि बच्चों के खेलने की सारी चीज़ें जैसे गेंदें और खिलौने नष्ट हो गई हैं। क्या दीमकें रंग-बिरंगी किताबों को खा गए हैं और क्या भूकंप ने मदरसों की इमारतों को ढहा दिया है? इन प्रश्नों के माध्यम से कवि यह दिखाना चाहते हैं कि अगर बच्चों के खेलने और सीखने के सभी साधन समाप्त हो गए हैं, तो फिर बच्चे काम पर क्यों जा रहे हैं?
क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आंगन
खत्म हो गए हैं एकाएक
भावार्थ:
कवि पूछते हैं कि क्या सारे खेल के मैदान, बगीचे, और घरों के आंगन अचानक समाप्त हो गए हैं। क्या बच्चों को खेलने और सीखने के लिए कोई जगह नहीं मिल रही, जिससे वे काम पर जाने के लिए मजबूर हो रहे हैं? यह स्थिति न केवल निराशाजनक है बल्कि यह भी दर्शाती है कि बच्चों के लिए कोई सुरक्षित और खुशहाल वातावरण नहीं बचा है।
तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में?
कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज्यादा यह
कि हैं सारी चीज़ें हस्बमामूल
पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुजते हुए
बच्चे, बहुत छोटे छोटे बच्चे
काम पर जा रहे हैं।
भावार्थ:
कवि इस स्थिति पर विचार करते हैं कि अगर खेल के मैदान, बगीचे, और अन्य बच्चों की खुशियों के स्थान समाप्त हो जाएँ, तो दुनिया में बचा ही क्या है? यह विचार अत्यंत भयानक होगा। लेकिन वास्तविकता इससे भी अधिक भयानक है, क्योंकि सभी चीज़ें सामान्य हैं, फिर भी बहुत सारे बच्चे, विशेषकर छोटे बच्चे, काम पर जा रहे हैं। यह स्थिति समाज की विडंबना और गंभीरता को उजागर करती है और यह हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम बच्चों को उनके बचपन की खुशी और अधिकार देने में विफल हो रहे हैं।
बच्चे काम पर जा रहे हैं का सारांश
कवि ने कोहरे से ढकी सड़क पर काम पर जाते बच्चों के दृश्य को गहरी चिंता और भयावहता के साथ प्रस्तुत किया है। यह स्थिति हमारे समय की सबसे भयानक स्थितियों में से एक मानी गई है, जिसमें बच्चे उनके बचपन से वंचित होकर काम करने के लिए मजबूर हैं। कवि ने प्रश्न उठाया है कि क्या हमारे समाज में ऐसी समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं कि बच्चों को काम पर जाना पड़ रहा है, जबकि खेल और शिक्षा के साधन नष्ट हो गए हैं। इसके अतिरिक्त, कवि ने यह भी पूछा है कि अगर सभी खुशियों के स्थान समाप्त हो जाएँ, तो दुनिया में क्या बचा है? इस विचार से अधिक भयानक यह है कि सभी चीज़ें सामान्य हैं, फिर भी बच्चे काम पर जा रहे हैं। यह स्थिति समाज की विडंबना और चिंता को दर्शाती है।
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